Tuesday, March 22, 2011

मेरी साधना-1

आत्म-प्रबोध के प्रथम जागरण की अनुभूति मुझे हृदय के आवेग,लक्ष्य की अस्पष्टता एवं कामनाओं के बाहुल्य के रूप में हुई | अहम् का बहुपथ-गामिनी आकांक्षाओं से संयोग हुआ |
अल्हड़ उत्साह,बाल आशा,मधुर वेदना और भोले विश्वास के उस झूले में झूलने को तत्पर हुआ जिसमे अनुभव और परिक्षण की डोरी का अभाव था | परिणाम शून्य | फिर भी अंतर्चेतना से ध्वनित होकर कोई निरंतर बोल रहा था -
"मैं भी कुछ करूँ |"

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