Wednesday, March 23, 2011

मेरी साधना -2

बहु-दिशा-स्थित पथ-निर्देशक स्थलों की और मैं स्वभावत: आकर्षित हुआ | प्रचंड प्रकाश-राशि से उन्मीलित मेरे नेत्रों ने अपना स्वाभाविक धर्म छोड़ दिया | मैंने उस प्रकाश-पुंज में पथ-शोधन करना चाहा | देखा- प्रकाश के बाह्य आवरण से आच्छादित अंधकार घनीभूत होकर बैठा है | कारण ? अंतर्वेदना की चिंगारी बहुत पहले ही नि:शेष हो चुकी थी |

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