Sunday, October 9, 2011

मेरी साधना-10

मेरी साधना का एक मात्र साध्य,मेरी जीवन-यात्रा का अभीष्ट स्था,मेरे बहुमुखी शक्ति-स्त्रोत का अवसान केंद्र,मेरी कामनाओं का स्वर्णिम लक्ष्य,मेरे प्राकृत स्वभाव का शांतिमय विचरण स्थल-मेरा कर्तव्य अंशी के अनादि विधान का वह अंश है जिसकी प्राप्ति,पूर्ति और पूर्णता में मेरे प्राकट्य का लक्ष्य,अस्तित्व की सार्थकता,जीवन की इतिश्री दूध में पानी की भांति अन्तर्निहित,शून्य में नक्षत्रों की स्थिति की भांति अंत:आश्रित है|
मैं उसके लिए और वह मेरे लिए है|

अविरल आत्म-मंथन,निरंतर भाव-विलोडन,सम्यक स्व-निरिक्षण,पूर्ण हृदय-परिक्षण द्वारा उपलब्ध तत्व और वेदों के अध्ययन,दर्शनों के चिंतन और इतिहास के मनन स्वरुप प्राप्त परिणाम-तत्व में विभिन्नता की सीमा रेखा का सर्वथा अभाव दिखाई दिया| ईश्वर द्वारा प्रसूत संदेश भी उसी तत्व की अभिव्यक्ति का कलात्मक रूप था|नाम रूपात्मक भेद असत्य सिद्ध हुआ|स्वधर्म और कर्तव्य की एकात्मा के दर्शन से आत्म-चक्षु आनंद-विभोर हो उठे,बोले-
"यही एक सत्य है|"

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