Thursday, October 13, 2011

मेरी साधना-11

स्वमाता और मातृत्व-आरोपित अन्य स्त्री में वात्सल्य का मूल स्रोत एकसा होते हुए भी उसका उपयोग स्व पर आकर भिन्न भिन्न हो जाता है| स्वमाता और विमाता का भी अंतर प्राकृतिक है| यही अवस्था और संबंध स्वधर्म और विश्व धर्म की है; - यही प्राकृतिक अंतर स्वधर्म और पर-धर्म में है| अतएव मुझे समझना होगा कि मानव-धर्म और स्वधर्म के मूल सिद्धांत एक होते हुए भी मेरे लिए केवल स्वधर्म ही कल्याणकारी है-
धर्म में स्व का अंश ही महत्त्वपूर्ण है|



विश्व प्रेम का प्रदर्शन और मानवता के कल्याण की बातें मेरी दृष्टि में पाखंड और राजनैतिक छल मात्र है| मेरी पहुँच के बाहर,शून्य के उच्च धरातल पर स्थित उच्चादर्शों और गुढ़ सिद्धांतों की गठरी से मैंने अपने मस्तिष्क को अनावश्यक रूप से बोझिल करना स्वीकार नहीं किया - इसलिए कि ऐसी भावना महान होने के कारण स्तुत्य तो है पर अव्यवहारिक और असंभव होने के कारण त्याज्य भी |


ये भी पढ़ें-

वीर झुंझार सिंह शेखावत,गुढ़ा गौड़जीका

No comments:

Post a Comment