Sunday, October 13, 2013

नई प्रणाली : नया दृष्टिकोण - 4 (राजपूत और भविष्य)

भाग तीन से आगे....
इस प्रश्न को हमें युग-धर्म अथवा व्यावहारिक राजनीति की दृष्टि से सोचना है और मालूम करना है कि हमारे शत्रु और मित्र कौन है| यह बताया जा चुका है कि हमारा प्रबल राजनैतिक प्रतिद्वंदी आज का सत्ताधारी बुद्धिजीवी वर्ग है| इसी वर्ग ने हमारे सम्पूर्ण प्रभुत्व और सामाजिक अधिकारों को समाप्त किया है| इसीलिए इस वर्ग का स्वाभाविक लक्ष्य हमें समूल नष्ट करके भविष्य के लिए अपने प्रभाव और अधिपत्य को सुरक्षित रखना है| बुद्धिजीवी-वर्ग ने यह कार्य श्रमजीवी-वर्ग को ढाल बनाकर किया है| उसने हमें बड़ी चतुराई से श्रमजीवी-वर्ग से पृथक करके शोषक और अत्याचारी का रूप दे दिया, तथा स्वयं उनके मुक्तिदाता के रूप में आगे आ गया| सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय, सामाजिक समता, आर्थिक समता, राजनैतिक समता आदि मनमोहक सिद्धांतों की ओट लेकर इस बुद्धिजीवी-वर्ग ने हमारे और अन्य श्रमजीवी वर्गों के बीच फूट का बीजारोपण कर सत्ता प्राप्त किया है, चुनावों में विजयी हुआ है तथा उसी सिद्धांत को आधार मानकर हमें कुचलने का प्रयास किया है| भविष्य में इस वर्ग की प्रभुसत्ता-विस्तार की बहुमुखी योजना का एक पक्ष यह भी अहि कि राजपूत क्षत्रियोचित गुणों सहित सर्वथा समाप्त होकर उसके प्रभुत्व-विस्तार के लिए निष्कंटक मार्ग बना दें|

इस बुद्धिजीवी-वर्ग यदि जातीयता के आधार पर व्याख्या करें तो सर्वप्रथम इस श्रेणी में ब्राहमण आतें है| ब्राह्मणों ने जिस प्रकार क्षत्रिय-अधिपत्य के समय क्षत्रियोचित गुणों और वैश्याधिपत्य के समय वैश्योचित गुणों का अपने में आरोहण कर लिया था, उसी भांति भावी श्रमजीवी-उत्थान में ये शुद्रोचित गुणों को अपनाकर फिर से समाज का अगुआ बनने के लिए तैयार हो गये| वैश्यादी अन्य पूंजीवादी और बुद्धिजीवी वर्गों की सहायता से आज पूर्ण सत्ता लगभग ब्राह्मणों के हाथों में है| अब ये ही ब्राहमण श्रमजीवी वर्गों के सहायक बनकर भावी युग का सूत्रपात कर रहे है|

इस बुद्धिजीवी वर्ग के अंतर्गत दूसरी जाति बनियों की है| इन्होने ब्राह्मणों से गठ-बंधन कर क्षत्रियों और अन्य शासक-वर्गों को तो पददलित कर दिया, पर जिस सत्ता को उन्होंने अपनी पूंजी के बल पर प्राप्त किया था वह अब पूर्णत: ब्राह्मणों के हाथों में चली गयी| सत्ता प्राप्त करके सर्व साधन-संपन्न होने के कारण अब ब्राहमण बनियों के हाथों की लगाम से संचालित होने को तैयार नहीं है| सत्ताधीश ब्राह्मणों को अब बनियों के धन की आवश्यकता नहीं है| यही कारण है कि वे अपने सहयोगी बनिया वर्ग को पददलित करने पर उतारू हो गए है| पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त और व्यक्तिगत सम्पत्ति को लेने के कानून आदि बनाकर सत्ताधारी दल ने अपने भावी स्वरूप का संकेत दे दिया है| जिस प्रकार ब्राह्मणों ने समय की आवश्यकता को समझकर श्रमजीवी शक्तियों का साथ देना शुरू कर दिया है, इस प्रकार स्वेच्छा से बनिए इस व्यवस्था को अपनाने को तैयार नहीं हो सकते| अतएव कल के ब्राह्मण बनिया मित्र निकट भविष्य में ही दो परस्पर विरोधी धाराओं को अपनाते हुए विरोधी रूप में दिखाई देंगे| पर बनिया सदैव से ही सविनय अत्याचार सहते रहने का अभ्यस्त है, इसलिए कुछ समय के लिए वह सत्ताधारी-वर्ग का अत्याचार सहता रहेगा| सत्ता से खुल्लम-खुल्ला विद्रोह करना बनिया-स्वभाव के विरुद्ध है| अतएव जब तक सत्ता ब्राह्मणों के हाथों में रहेगी तब तक वह प्रकट रूप से सत्ता का दासानुदास बना रहेगा पर वास्तविक रूप से वह झुकते हुए पलड़े का साथ देने लग जायेगा| ज्यों ही बनिया को विश्वास हो जायेगा कि अब राजपूत आदि श्रमजीवी जातियां सत्ता प्राप्त करने वाली है, त्यों ही वह इधर आकर मिल जायेगा|

सत्ताधारी इसी बुद्धिजीवी-वर्ग के अंतर्गत ब्राह्मण-बनियों के अतिरिक्त और भी कई निम्न-वर्णों की बुद्दिजीवी जातियां आती है जिनका कोई वर्ण निश्चित नहीं है|

क्रमश:...

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