Monday, October 14, 2013

नई प्रणाली : नया दृष्टिकोण - अंतिम (राजपूत और भविष्य)

भाग छः से आगे .....

राजपूत भविष्य में क्या करे, यह स्पष्ट हो गया है| बुद्धिजीवी तत्वों द्वारा नियंत्रित अधोन्मुखी कांग्रेस राजपूतों के लिए कोई सहारा नहीं हो सकती| अतएव जो राजपूत कांग्रेस में सम्मिलित होकर सत्ता-प्राप्ति के स्वप्न देखते है उनकी योग्यता को अत्यंत ही सीमित समझनी चाहिये| वे भावी घटनाचक्र को समझने की क्षमता नहीं रखते और केवल सिद्धान्तहीन अवसरवादिता से ही लाभान्वित होना चाहते है| पर वे कदाचित आज यह अनुभव करने की स्थिति में नहीं है कि कांग्रेस में भी उनको तो सौतेली माँ का सा ही व्यवहार मिलेगा| बुद्धिजीवी वर्ग केवल राजपूतों में फूट डालने और उनकी शक्ति को अपने पक्ष में उपयोग करने के लिए ही ऐसे व्यक्तियों को गले लगाना चाहता है, उन्हें व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लाभान्वित करने के लिए नहीं| तब फिर विभीषण नीति को अपनाकर विभीषण क्यों बना जाय ? क्यों उनके हाथों में कठपुतली बनकर स्वजाति के स्वार्थों, हितों और उद्देश्य पर कुठाराघात किया जाय ? क्यों क्षणिक व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सामाजिक स्वार्थ को हानि पहुंचाई जाय ? इस विषय में महाकवि बिहारी के इस दोहे को दृढ़ता के साथ हृदयंगम कर लेना आवश्यक है...

स्वार्थ न सुकृत श्रम वृथा, देखि विहंग विचारी|
बाजि पराये पाणि पड़, तूं पंछी नहिं मारि||


इसी भांति अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी विचारधारा के दास साम्यवादियों से भी हाथ मिलाने की आवश्यकता नहीं है और न अब अल्पसंख्यक बुद्धिजीवी-वर्ग द्वारा बहुसंख्यक पुरुषार्थी वर्ग पर प्रभुत्त्व स्थिर रखने देने में दूरदर्शिता है| इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमें गांवों की समस्याओं और पुरुषार्थी-वर्ग को साथ लेकर प्रभावशाली,आर्थिक और राजनैतिक कार्यक्रम बनाना और क्रियान्वित करना चाहिये| यह आर्थिक और राजनैतिक कार्यक्रम क्या हो, यह पुस्तक का विचारणीय विषय नहीं है, पर मूलभूत रूप से ग्रामीण-उन्नति और समस्याओं को उसमें मुख्य स्थान मिलना चाहिए और आगामी कुछ ही वर्षों में इस प्रकार की राजनैतिक चेतना का गांवों में संचार कर देना चाहिए कि एक भी पुरुषार्थी का मत किसी भी बुद्धिजीवी के पक्ष में न पड़ने पावे| इस बुद्धिजीवी-वर्ग का अब गांवों में पूर्ण राजनैतिक बहिष्कार हो जाना आवश्यक है| इस वर्ग का कार्य-क्षेत्र केवल बड़े शहरों मत प्राप्त करने तक ही सीमित कर देना चाहिए|

इसी दृष्टिकोण के अनुसार जातिवाद को मिटाना आवश्यक नहीं है, वरन जातिवाद के घृणात्मक और विभेदात्मक पहलुओं को समाप्त करना आवश्यक है| सभी जातियों की मौलिक विशेषताओं का लाभ उठाते हुए और उनकी जातिय विशेषताओं और परम्पराओं को सुरक्षित रखते हुए यह कार्यक्रम प्रचलित किया जा सकता है| जिस पुरुषार्थी-वर्ग को साथ लेकर नये कार्यक्रम को अपनाया जाय, उसमें निम्नलिखित जातियां मुख्य रूप से सम्मिलित की जा सकती है-

श्रमिक वर्ग में हम जाट,राजपूत,गुजर,विश्नोई,अहीर,सीरवी,पीटल,राइका,कलवी आदि मुख्यत: कृषक और पशुपालक जातियों को, भील,मीणा,बावरी,सांसी,गरासिया,कोली आदि आज दलित वर्ग के नाम से पुकारी जाने वाली जातियों को, चमार,रेगर,भांभी,मोची आदि हरिजन जातियों को कायमखानी,सिपाही,रावत,महारावत,सिन्धी,मुसलमान,चारण,पुरोहित,रावणा राजपूत, माली आदि सैनिक और अर्धसैनिक जातियों को, तथा हिन्दू समाज पर आश्रित आज की कलाकार और कारीगर कही जाने वाली जातियों को साथ लेकर नये कार्यक्रम का सूत्रपात कर सकते है|

समय बहुत ही शीघ्रता से परिवर्तित हो रहा है| यदि समय की गति के साथ चलने की हम में क्षमता नहीं हुई तो हम नि:संदेह पीछे रह जावेंगे और आगे निकले हुए समय को कभी भी पकड़ने में समर्थ नहीं हो सकेंगे| अब समय का एक भी क्षण खोना सैकड़ों वर्षों की निष्क्रियतापूर्ण स्थिति से कहीं अधिक घातक होगा, परिश्रम के छोटे से अंश को बचा कर रखना मुर्खता-पूर्ण कंजूसी होगी, शक्ति को तनिक भी निष्क्रिय रखना उसे सदैव के लिये समाप्त करना होगा, दृव्य के एक भी पैसे को छिपाना उसके मूल्य को धूलि के समान नगण्य करना होगा| मन, वचन और कर्म के समस्त साहस और शक्तियों को बटोर कर इस कार्य में अब लग जाना है| व्यक्तिगत विवशताओं, पारिवारिक आवश्यकताओं और सामाजिक बाधाओं को पीछे धकेल दो| मान अपमान, निराशा, निरुत्साह, रागद्वेष, घृणा, स्वार्थ आदि की भावनाओं को तिलांजलि दे दो| अपने स्वभाव और रहन-सहन में सामाजिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए परिवर्तन लाओ और निर्भीक, उत्साही और प्रसन्नचित सैनिकों के रूप में कार्य क्षेत्र में कूद पड़ो| इस संकेत वाक्य को समझो,- “अभी नहीं, तो कभी नहीं|”

हमें इस बात को ध्यान मे रखना है कि राजपूत एक पूर्ण विकसित जाति और राष्ट्र है| हमें यह भी याद रखना है कि इस जाति और राष्ट्र को भी अपनी जातिय-विशिष्टताओं और परम्पराओं सहित जीवित रहने का उतना ही अधिकार है जितना विश्व की किसी अन्य जाति को|हमें यह बतलाना है कि आज इस जाति को योजनाबद्ध रूप से समाप्त किया जा रहा है| हमें यह स्मरण दिलाना है कि राजपूत जाति के नाश में हिन्दू जाति की महान परम्पराओं और राष्ट्रीय गुणों का नाश है| हमें मांग करनी है कि राजपूत जाति को इस पवित्र भारत भूमि पर सम्मान सहित जीवित रहने का अवसर दिया जाय| हमें अनुभव करना है कि भारत राष्ट्र के प्रति हमारी भी जिम्मेदारियां है| हम यहाँ पर विदेशी अथवा तटस्थ दर्शक मात्र नहीं है| और अंत में दृढ़तापूर्वक निर्णय करना है कि हम इसी भारत भूमि पर सम्मान-पूर्वक जीवित रहेंगे| न्याय मांगेंगे नहीं बल्कि उसे प्राप्त करेंगे|

इस समय प्रत्येक राजपूत चेतना और महत्वाकांक्षा सहित हमें अपने अन्य पुरुषार्थी भाइयों की सहायता करनी है, तथा उनको बुद्धिजीवी तत्वों से छुटकारा दिलाना है| इस प्रकार बुद्धिजीवी-वर्ग से सत्ता हस्तांतरित कर लेना हमारी सफलता का प्रथम सोपान होगा| इस सत्ता प्राप्ति के उपरांत सब वर्णों को उचित रूप से शासनाधिकार देते हुए जनता के वर्तमान विजातीय-संस्कारों और भावनाओं में परिवर्तन लाकर विशुद्ध भारतीय व्यवस्था की स्थापना करना हमारा अंतिम लक्ष्य होगा| अब हमारे सामने निश्चित रूप से दो कार्य-क्रम है सतोगुणी जातीय भाव का निर्माण करते हुए वास्तविक संगठन द्वारा शक्ति का निर्माण करना और पुरुषार्थी वर्गों के साथ मिलकर बुद्धिजीवी-वर्ग को प्रजातांत्रिक प्रणाली द्वारा सत्ताच्युत करना|

अतएव हमें निराश और निरुत्साही होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है भविष्य निश्चित रूप से हमारे लिए आशादायी, प्रेरणादायी, विजयदायी, उज्जवल और उल्लासमय होगा| इसीलिए नपुंसकता और हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर खड़े हो जाओ| घबराते क्यों हो, स्वयं भगवान् का आदेश है-

क्लैब्यं मां स्म गम: पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते |
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्तवोत्तिष्ठ परंतप ||


नपुसंकता की ओर गमन मत कर, यह तेरे लिए योग्य नहीं है| हे शत्रुओं को तपाने वाले ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर खड़ा हो जा|

-: समाप्त :-

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