Saturday, October 8, 2011

मेरी साधना-9

इस बार तर्क को श्रद्धा और विश्वास का सहगामी बनना पड़ा|श्रद्धा और विश्वास को ज्ञान के प्रति नमनशील होना पड़ा|तब एक अस्पष्ट,धूमिल एवं दूरस्त तत्व स्पष्टता,प्रकाश और निकटता की सीमा में प्रवेश करते देखा गया|निकटता की अंतिम परिधि का अति- क्रमण करने के उपरांत ज्ञात हुआ,-यही तो वह अमर तत्व है,जिसे मेरी उत्पत्ति के पहले ही ईश्वर ने मुझे दे दिया था,पर जिसकी पहचान मैं अब तक नहीं कर सका था|
उसकी उपलब्धि से मैं कृत-कृत्य हो गया|
वह था मेरा कर्तव्य-ज्ञान|

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