पर भागवत-सन्देश का अमर अंकुर मेरे हृदय -स्थल पर प्रस्फुटित हो चला था | इस बार मैंने उसे श्रद्धा और विश्वास के जल से सींचाना प्रारंभ किया | देखा- सफलता की अदभुत सम्भावना है इस प्रयोग में | शीतलता,स्निग्धता,अनुकूल आहार पेय और रक्षण के वातावरण में परिपोषित यह पौधा आशातीत वृद्धि को प्राप्त होने लगा | अपूर्ण तर्क ने पुन: आपत्ति की,पर " तुम्हे भी अपना उचित स्थान मिलेगा |" कह कर उसे चलता किया |
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