Saturday, March 26, 2011

मेरी साधना- 5

एक स्वर्णिम प्रभात मेरा मानस-मयूर मुग्ध हो अकस्मात नाच उठा | उसने अपने रत्न जडित उत्साह-पंख फैलाकर अज्ञात प्रसन्नता का आत्म-स्फुलिंग के रूप में प्रत्युतर दिया | प्रकृति का अणु-परमाणु भावी आनंद का संदेशवाहक बन पड़ा | मधुर और वेगवती ध्वनि वितरण करती हुई मंगलवती आत्म-वीणा झंकृत हो उठी |
वादक था स्वयम परमेश्वर;सन्देश था साध्यज्ञान और राग थी सत्य-वाहिनी |

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