मेरे मानस-प्रदेश पर भौतिक विफलता के अवसान की सरिता दो धाराओं में प्रवाहित होने लगी | आत्म-विसर्जन की धारा का उदगम मेरे मानस-स्थल का क्षुद्र अहं था | कर्म-त्याग की प्रेरक शक्ति थी मेरे द्वारा अनुभूत ज्ञान की अपूर्णता | अंतरद्वन्द की आंधी से मेरी आत्मा कम्पित हो उठी | भीतर का सत्व विजयी हुआ,- बोला---
" दोनों ही मार्ग असत्य है | साधक ! और प्रयत्न कर - वह स्थल दूर नहीं है,जहाँ सत्य और प्रकाश अखंड रूप से निवास करते है |"
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